प्राचीन काल से ही शिक्षा को मानव जीवन का सर्वांगीण विकास का साधन माना गया है। शिक्षा अर्थात् 'विद्या' प्राचीन काल में शिक्षा को विद्या के नाम से जाना जाता था । विद्या शब्द की व्युत्पत्ति 'विद्' धातु से हुई है। जिसका अर्थ है जानना । इस प्रकार विद्या शब्द का अर्थ ज्ञान से है । हमारे प्राचीन ग्रंथों में ज्ञान को मानव का तृतीय नेत्र कहा गया है जो अज्ञान को दूर कर सत्य के दर्शन कराने में सहायक होता है । 'विद्या ददाति विनयम' विद्या हमें विनम्र बनना सिखाती है । विद्या का आधुनिक रूप शिक्षा है ।'शिक्षा' शब्द संस्कृत भाषा का मूल शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है विद्या प्राप्त करना अर्थात् ज्ञानार्जन करना । इस प्रकार शिक्षा ज्ञानार्जन की एक सतत् प्रक्रिया है । बालक की आंतरिक शक्तियों ,प्रतिभाओं और क्षमताओं को विकसित करना ही शिक्षा है । शिक्षा मनुष्य के जन्म से प्रारंभ होकर मृत्यु पर्यंत निरंतर चलती रहती है । इस प्रकार यह जीवन भर चलने वाली एक सतत् प्रक्रिया है । शिक्षा मनुष्य के प्रत्येक अनुभव से उसके ज्ञान के भंडार में वृद्धि करती रहती है । शिक्षा के माध्यम से मनुष्य अपनी जिज्ञासाओं का हल प्राप्त करता है । अतः शिक्षा को जीवन का सार कहा जा सकता है । आधुनिक शिक्षा पुस्तकों का भार बन गई है । हमें शिक्षा को छात्रों पर लादना नहीं वरन् छात्र की आंतरिक शक्तियों का विकास, हम किस प्रकार से करें इस बात को ज्ञात करना है। शिक्षा के माध्यम से हम ज्ञान का आदान- प्रदान करके छात्रों में जानने, सोचने, समझने की शक्ति का विकास कर सकते है।शिक्षा त्रिमुखी प्रक्रिया है इसमें शिक्षक और छात्र सक्रिय रहकर शिक्षण प्रक्रिया के माध्यम से आदान-प्रदान कर शिक्षा ग्रहण करते है।