अपनी संस्कृति और आधुनिकता के बीच फंसे पालक
- बच्चों में आ रहे हैं अप्रत्याशित सामाजिक बदलाव
ुनिकता और संस्कृति में मेल नहीं बैठा पा रहे - बड़े स्कूलों के बड़े तामझाम से मोह भंग
-यर कॉन्वेंट की नई पहल
अपनी संस्कृति और आधुनिकता के बीच फंसे पालक
- बच्चों में आ रहे हैं अप्रत्याशित सामाजिक बदलाव
- आधुनिकता और संस्कृति में मेल नहीं बैठा पा रहे
- बड़े स्कूलों के बड़े तामझाम से मोह भंग
- पायोनियर कॉन्वेंट की नई पहल
इंदौर। माता-पिता बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए तमाम तरह के प्रयास करते हैं। इसमें बेहतरीन शिक्षण सुविधाओं से लेकर तमाम तरह की सुखों को वे अपने बच्चों को कम उम्र में देना आरंभ कर देते हैं। उद्देश्य एक ही है कि बच्चा अच्छा पढ़-लिख जाए और अपना अच्छा भविष्य बनाए। परंतु इस सोच में पैसे से सब कुछ देने की भावनाएं बलवती होती जा रही हैं जिसके कारण बच्चे न केवल माता-पिता से दूर होते जा रहे हैं बल्कि भटकाव औरअवसाद के शिकार भी हो रहे हैं। आधुनिक दौर में माता-पिता दोनों ही नौकरी करते हैं और पैसा इसलिए कमाते है ताकि बच्चों को सुरक्षित भविष्य दे सकें। इसके लिए पैसे कमाने की दौड़ में वे तेज गति से भाग रहे हैं पर पीछे छूट रहा है बच्चों से प्रेम और साथ जिसे वे विभिन्न क्लासेस के माध्यम से पूर्ण करने का प्रयास करते हैं। बच्चे नाराज न हों इसके लिए कुछ भी करते हैं। माता-पिता बच्चों से दूर रहते है और बच्चे अपनी जिद मनवाने के लिए किसी भी हद तक जाते हैं। बच्चों से डरे माता-पिता बच्चों की हर इच्छा पूर्ण करते हैं जिसमें मोबाईल से लेकर टेलीविजन तक शामिल हैं।
पार्टी के लिए हजारों रुपए
पार्टी कल्चर के कारण आजकल पांचवी से आठवीं तक के बच्चे पार्टी मनाने के लिए हजारों रुपए खर्च कर देते हैं। खुद का बर्थडे हो या फिर दोस्त का बर्थ डे वे होटलों में हजारों रुपए खर्च करते हैं और ना सुनने की उन्हें आदत ही नहीं क्योंकि माता-पिता ही बच्चों से डरे हुए हैं। पार्टी कल्चर के कारण बच्चे महंगे गिफ्ट देने के आदि हो गए हैं और उन्हें यही लगता है कि महंगे गिफ्ट देना ही अच्छा होता है।
स्कूटर से लेने मत आओ
बड़े स्कूलों में पैसे वालों के बीच में रहने के कारण कई मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चे तुलना करने लगते हैं। वे अपने माता-पिता को यह तक कहने लगते हैं कि स्कूल में स्कूटर से लेने मत आया करो दोस्तों के बीच अच्छा नहीं लगता। वहीं धनाढ्य लोगों के बच्चों की कहानी अलग ही है। वहां पर भी यह कहा जाता है कि रोजाना ड्राइवर को एक ही गाड़ी में मत भेजो बल्कि रोज अलग-अलग गाड़ी भेजो ताकि दोस्तों को पता चले कि हमारे पास कितनी गाड़ियां हैं।
मोबाईल से बिगड़ रही है बात
माता-पिता बच्चों को मोबाईल फोन इंटरनेट कनेक्शन के साथ आठवीं कक्षा से ही देने लगे हैं जिसके कारण समस्या आ रही है। बच्चे अपने तरीके से जो मन में आए वह इंटरनेट पर देखने लगे हैं। लगातार मोबाईल गेम्स खेलने के कारण बच्चे चिड़चिड़े हो गए हैं और बात-बात पर गुस्सा करने लगे हैं
अपनी संस्कृति सर्वश्रेष्ठ है: डॉ.प्रमोद जैन
शिक्षाविद् व पायोनियर समूह के निदेशक डॉ. प्रमोद जैन का कहना है कि मध्यमवर्गीय परिवारों में इस प्रकार की समस्याएं आम होती जा रही हैं। माता-पिता को यह समझना होगा कि बच्चों को केवल पैसा कमाने का लक्ष्य न दें और तुलना बिल्कुल न करें। बच्चों को संस्कार माता-पिता के अलावा कोई भी अच्छी तरह से नहीं दे सकता। उनके साथ समय बिताएं और अपनी संस्कृति में निहित मूल्यों का अर्थ उन्हें बताएं.. पैसों व कोचिंग क्लासेस के माध्यम से इसकी भरपाई नहीं हो सकती। आपने कहा कि किसी भी बच्चें की जिंदगी में उसका स्कूल सबसे महत्वपूर्ण जगह होती जहां से वह संस्कार और ज्ञान दोनों प्राप्त करता है। बच्चों को स्कूल में ऐसा माहौल चाहिए जहां से वह केवल पैसों की अंधी दौड़ और दिखावे की बात नहीं करे बल्कि वह अपनी संस्कृति और संस्कारों को जाने और उनका अनुसरण करे।
पायोनियर समूह की नई पहल मेरी संस्कृति मेरी शिक्षण पद्धति
पायोनियर समूह के निदेशक डॉ. प्रमोद जैन के अनुसार वर्तमान में शिक्षण पद्धति को हम पायोनियर समूह की सभी शैक्षणिक संस्थाओं में बच्चों के परिवेश के अनुरुप ढालने का प्रयत्न कर रहे है। हमें यह समझना होगा कि बच्चों को केवल भौतिकता की ओर ढकेलने से कुछ प्राप्त नहीं होगा। बच्चों को हमें अपनी संस्कृति और संस्कारों में ढालने के लिए घर से शुरुआत करना होगी। पायोनियर समूह में हम बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ अपनी संस्कृति और संस्कारों में ढालने का प्रयत्न करते है जिसके अच्छे परिणाम भी सामने आए है।
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